Monday, January 18, 2010

लीजिए, हम भी आ गए...

ब्लॉग की अंतहीन दुनिया में कदम रखने से पहले ये बात कई दफ़ा दिमाग में आई कि डायरी लिखने का ये आधुनिकतम तरीका क्या वाकई आपके भीतर के सच को सामने लाने का एक ज़रिया बन सकता है? तमाम ब्लॉग देखे, खंगालने की कोशिश की... ऐसा लगा कि इसका स्वरूप डायरी का कम और लघु पत्रिकाओं का ज्यादा है। एक दूसरे से जुड़कर ब्लॉगर्स के विशाल संसार में दाखिल होने का ये दरवाजा कुछ ऐसा है जो कहीं न कहीं तसल्ली भी देता है और अपने होने का एहसास भी बरकरार रखता है।

दरअसल जब भी कोई नया माध्यम या नई तकनीक आती है, उसे अपनाने वालों की होड़ लग जाती है। वक्त के साथ तेज़ भागने वालों की जमात सबसे पहले उसे अपनाने की कोशिश करती है। जब से ब्लॉगिंग का ज़माना आया, मेरे कई परिचितों ने पूछा, `क्या आपने फलां का ब्लॉग देखा... क्या आप पत्रकारिता के मौजूदा स्वरूप पर चल रही बहस में शामिल हुए... क्या आपने दलाल पत्रकारों की हकीकत पढ़ी...’ ज़ाहिर है ऐसे तमाम सवालों और मन के भीतर छिपी मेरी बेचैनियों ने मुझे भी देर से ही सही लेकिन ब्लॉग की दुनिया से जोड़ दिया...।

आमतौर पर मेरे सोचने और करने में कुछ लंबा फासला होता है... वक्त की कमी और ज़िंदगी की ज़द्दोज़हद के बीच चाहकर भी कुछ करने में ज्यादा वक्त लगता रहा है... लेकिन अब शायद ऐसा न हो... मुझे लगा कि ये मंच कुछ अपना सा है, ये मंच किसी की रचनात्मकता और सोच को आकार देने और ब्लॉगर्स की दुनिया से जुड़ने का बेहतरीन ज़रिया है।

अब इस मंच पर ज़िंदगी और समाज, दिल को झकझोरने वाली घटनाएं, हर रोज़ मिलने वाले नए नए लोग और वो तमाम शख्सियतें होंगी जिनको समझने, पहचानने की लगातार कोशिश करता रहा। कुछ सुलझे-अनसुलझे सवाल भी होंगे और वो `दर्शन’ भी जो जाने अनजाने मैं गढ़ता चला गया। बहस मुबाहिसे भी होंगे और अपने अपने नज़रिये का टकराव भी।

`नई सुबह’ में आपका स्वागत है।